सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उप-वर्गीकरण को मंजूरी दी

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले अपने पहले के फैसले की समीक्षा के लिए दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सात न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लिया गया। अदालत ने पहले के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पाई और 1 अगस्त के फैसले को बरकरार रखा, जो SC/ST आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है।

निर्णय का विवरण

इस पीठ में न्यायमूर्ति बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मित्तल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे, जिन्होंने छह अलग-अलग राय दीं। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने बहुमत के उप-वर्गीकरण के दृष्टिकोण से असहमति जताई। अदालत ने जोर दिया कि संविधान का अनुच्छेद 14 तब उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है जब वर्ग समान रूप से स्थित नहीं होते हैं।

मुख्य राय

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने SC/STs के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ की पहचान करने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि आरक्षण लाभों का उचित वितरण सुनिश्चित किया जा सके। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने सुझाव दिया कि राज्यों को इस क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए नीतियां विकसित करनी चाहिए। अदालत ने यह भी जोर दिया कि राज्य सेवाओं में उप-श्रेणियों के प्रतिनिधित्व पर डेटा एकत्र करना महत्वपूर्ण है ताकि अनुच्छेद 16(4) के तहत उप-वर्गीकरण को उचित ठहराया जा सके।

अदालत ने स्पष्ट किया कि जबकि उप-वर्गीकरण की अनुमति है, यह प्रत्येक जाति के लिए अलग सीट आवंटन की ओर नहीं ले जाना चाहिए। इसके बजाय, तुलनीय सामाजिक पिछड़ेपन वाले समूहों को आरक्षण के लिए एक साथ माना जाना चाहिए।

संवैधानिक प्रभाव

निर्णय ने पंजाब अधिनियम की धारा 4(5) की संवैधानिक वैधता को संबोधित किया, जो SCs और STs के भीतर वर्गीकरण से संबंधित है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता जब तक कि यह कुछ जातियों को दूसरों पर विशेष लाभ नहीं देता।

Doubts Revealed


भारत का सर्वोच्च न्यायालय -: भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश की सबसे उच्च न्यायिक अदालत है। यह कानूनी मामलों पर महत्वपूर्ण निर्णय लेता है और सुनिश्चित करता है कि कानून सही तरीके से पालन किए जाएं।

अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ -: अनुसूचित जातियाँ (SC) और अनुसूचित जनजातियाँ (ST) भारत में वे समूह हैं जो ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे हैं। सरकार उन्हें उनके सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विशेष समर्थन प्रदान करती है।

उप-वर्गीकरण -: उप-वर्गीकरण का अर्थ है किसी बड़े समूह को कुछ मानदंडों के आधार पर छोटे समूहों में विभाजित करना। इस संदर्भ में, यह SCs और STs को छोटे श्रेणियों में विभाजित करने का संदर्भ है ताकि लाभों का उचित वितरण सुनिश्चित हो सके।

पुनर्विचार याचिकाएँ -: पुनर्विचार याचिकाएँ अदालत से उसके पूर्व निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए की गई अनुरोध होती हैं। लोग इन्हें तब दाखिल करते हैं जब उन्हें लगता है कि निर्णय में कोई गलती हुई है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ -: मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ एक वरिष्ठ न्यायाधीश और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख हैं। वे महत्वपूर्ण मामलों का नेतृत्व करते हैं और न्याय सुनिश्चित करते हैं।

क्रीमी लेयर -: ‘क्रीमी लेयर’ का संदर्भ वंचित समूहों के भीतर के धनी और अधिक विशेषाधिकार प्राप्त सदस्यों से है। इन्हें पहचानने से यह सुनिश्चित होता है कि लाभ उन तक पहुंचे जिन्हें उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

राज्य सेवाएँ -: राज्य सेवाएँ राज्य सरकार के अंतर्गत नौकरियों और पदों को संदर्भित करती हैं। इनमें प्रशासन, पुलिस, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में भूमिकाएँ शामिल हैं।

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